Thursday, September 30, 2010

अयोध्या विवाद: फैसले के खास-खास बिंदू

नई दिल्ली।। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आ चुका है। आइए देखते हैं क्या हैं फैसले के बिंदू:-



1-सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया है।

2.जजमेंट में यह भी साबित हो गया है कि मंदिर तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद।

3.जहां रामलला विराजमान हैं वही राम जन्मभूमि है।

4. जमीन 3 भागों में बांटा जाएगा।

5 . जहां रामलला विराजमान है वह जमीन मंदिर को दी जाएगी।

6. एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को।

7. एक तिहाई निर्मोही अखाड़ा दिया जाएगा। इसमें राम चबूतरा और सीता रसोई भी शामिल है।

8. जहां रामलला विराजमान हैं वह स्थान मंदिर को।



गौरतलब है कि पूरा देश यह जानना चाहता है कि आखिर इस विवादित जमीन पर किसका मालिकाना हक है।

इस मामले पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्पेशल लखनऊ बेंच ने 28 मुद्दों को अपने फैसले का आधार बनाया। यानी जमीन पर किसका मालिकाना हक इसको तय करने को लेकर कोर्ट ने इन 28 मुद्दों पर गौर फरमाया है।

इस विवादित जमीन के लिए 5 मुकदमे चल रहे थे।

इस मामले में पहला मुकदमा 1885 में दायर किया गया था। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में यह मुकदमा दायर किया था। उन्होंने फैजाबाद कोर्ट से इजाजत मांगी थी कि उन्हें विवादित ढांचे के पास चबूतरा बनाने की इजाजत दी जाए, जहां पर भगवान की प्रार्थना की जा सके। लेकिन, कोर्ट ने इस मुकदमे को खारिज कर दिया था। कोर्ट का तर्क था कि 350 (1528) साल पहले यह विवाद हुआ था और आपने मुकदमा काफी लेट किया है। गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर के सिपहसलार मीर बाकी द्वारा 1528 में कराया गया था। हिंदू धर्माचार्यों का दावा है कि मीर बाकी ने हिंदू मंदिर को तोड़ कर वहां मस्जिद का निर्माण किया था।

मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी मस्जिदः हाई कोर्ट

लखनऊ।। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि पर फैसला देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है। राम चबूत
रा और गर्भ गृह दोनों निर्मोही अखाड़ा को दे दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ वकील रविशंकर प्रसाद ने बताया कि तीनों जजों ने अपने फैसले में कहा कि विवादित भूमि को तीन हि्स्सों में बांटा जाएगा। उसका एक हिस्सा (जहां राम लला की प्रतिमा विराजमान है हिंदुओं को मंदिर के लिए) दिया जाएगा। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया जाएगा और तीसरा हिस्सा मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाएगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने इस मामले में अपना फैसला कोर्ट नंबर 21 में दोपहर 3.30 बजे से सुनाना शुरू कर दिया। मीडियाकर्मियों को अदालत जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। बाद में डीसी ऑफिस में बनाए गए मीडिया सेंटर में मीडियाकर्मियों को तीनों जजों के फैसलों की सिनॉप्सिस दी गई।

लखनऊ के डीएम अनिल कुमार सागर ने कहा कि मामले से सीधे तौर पर जुड़े लोगों को ही कोर्ट नंबर 21 में प्रवेश करने की इजाजत थी। जिन्हें प्रवेश दिया गया उन्हें फैसला सुनाए जाने से पहले कक्ष से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। डीआईजी राजीव कृष्ण ने कहा कि फैसले के बाद किसी तरह के विजय जुलूस या गम के प्रदर्शन के आयोजन पर पहले से ही पाबंदी लगी हुई है। अगर इस रोक के बावजूद ऐसी कोई कोशिश की गई तो उससे सख्ती से निपटा जाएगा।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट को 24 सितंबर को ही फैसला सुना देना था, लेकिन पूर्व नौकरशाह रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को निर्णय एक हफ्ते के लिए टाल दिया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद हाई कोर्ट के फैसले सुनाने का रास्ता साफ हुआ।.

अर्से पुराने मुद्दे का दोनों समुदायों के बीच बातचीत से कोई हल नहीं निकल सका। पूर्व प्रधानमंत्रियों- पी. वी. नरसिम्हा राव, विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे के बातचीत से निपटारे की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

हालांकि, उस जमीन पर विवाद तो मध्ययुग से चला आ रहा है लेकिन इसने कानूनी शक्ल वर्ष 1950 में ली। देश में गणतंत्र लागू होने से एक हफ्ते पहले 18 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने विवादित स्थल पर रखी गईं मूर्तियों की पूजा का अधिकार देने की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया था।

तब से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में बाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधि के तौर पर अनेक पक्षकार शामिल हुए। अदालत ने इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के सैकड़ों गवाहों का बयान लिया। अदालत में पेश हुए गवाहों में से 58 हिन्दू पक्ष के, जबकि 36 मुस्लिम पक्ष के हैं और उनके बयान 13 हजार पन्नों में दर्ज हुए।

हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए वर्ष 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआई ) से विवादित स्थल के आसपास खुदाई करने के लिए कहा था। इसका मकसद यह पता लगाना था कि मस्जिद बनाए जाने से पहले उस जगह कोई मंदिर था या नहीं। हिंदुओं और मुसलमानों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हुई खुदाई मार्च में शुरू होकर अगस्त तक चली।

इस विवाद की शुरुआत सदियों पहले सन् 1528 में मुगल शासक बाबर के उस स्थल पर एक मस्जिद बनवाने के साथ हुई थी। हिंदू समुदाय का दावा है कि वह स्थान भगवान राम का जन्मस्थल है और पूर्व में वहां मंदिर था। विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन ब्रितानी सरकार ने वर्ष 1859 में दोनों समुदायों के पूजा स्थलों के बीच बाड़ लगा दी थी। इमारत के अंदर के हिस्से को मुसलमानों और बाहरी भाग को हिन्दुओं के इस्तेमाल के लिए निर्धारित किया गया था। यह व्यवस्था वर्ष 1949 में मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति रखे जाने तक चलती रही।

उसके बाद प्रशासन ने उस परिसर को विवादित स्थल घोषित करके उसके दरवाजे पर ताला लगवा दिया था। उसके 37 साल बाद एक याचिका पर वर्ष 1986 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने वह ताला खुलवा दिया था

समय गुजरने के साथ इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। वर्ष 1990 में वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा निकाली, मगर उन्हें तब बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। केंद्र में उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार थी। 31 अक्टूबर 1990 को बड़ी संख्या में राम मंदिर समर्थक आंदोलनकारी अयोध्या में आ जुटे और पहली बार इस मुद्दे को लेकर तनाव, संघर्ष और हिंसा की घटनाएं हुईं।

सिलसिला आगे बढ़ा और 6 दिसम्बर 1992 को कार सेवा करने के लिए जुटी लाखों लोगों की उन्मादी भीड़ ने वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। प्रतिक्रिया में प्रदेश और देश के कई भागों में हिंसा हुई, जिसमें लगभग दो हजार लोगों की जान गई। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी और केंद्र में पी. वी. नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार थी।

हालांकि, इस बार अदालत का फैसला आने के समय वर्ष 1990 व 1992 की तरह कोई आंदोलन नहीं चल रहा था, बावजूद इसके सुरक्षा को लेकर सरकार की सख्त व्यवस्था के पीछे कहीं न कहीं उन मौकों पर पैदा हुई कठिन परिस्थितियों की याद से उपजी आशंका थी।

अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी पहला मुकदमा वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दाखिल किया गया , जिसमें उन्होंने वहां रामलला की पूजा जारी रखने की अनुमति मांगी थी। दूसरा मुकदमा इसी साल 1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास की तरफ से दाखिल किया गया , जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया। तीसरा मुकदमा 1959 में निर्मोही अखाडे़ की तरफ से दाखिल किया गया, जिसमें विवादित स्थल को निर्मोही अखाडे़ को सौंप देने की मांग की गई थी। चौथा मुकदमा 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की तरफ से दाखिल हुआ और पांचवां मुकदमा भगवान श्रीरामलला विराजमान की तरफ से वर्ष 1989 में दाखिल किया गया। वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता की अर्जी पर चारों मुकदमे इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में स्थानांतरित कर दिए गए थे। 

Monday, September 27, 2010

अयोध्या पर फैसला आएगा या टलेगा, फैसला आज

नई दिल्ली।। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल पर जमीन के मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला टालने का
अनुरोध करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (28 सितंबर) को फैसला करेगा।

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच इस याचिका पर सुनवाई करेगी और फैसला देगी कि अध्योध्या संबंधी विवाद पर हाई कोर्ट के आने वाले फैसले को टालना है या नहीं। बेंच सुबह साढ़े 10 बजे याचिका पर सुनवाई शुरू करेगी।
अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच 24 सितंबर को फैसला सुनाने वाली थी, लेकिन पिछले सप्ताह (23 सितंबर को) रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट रमेश चंद्र त्रिपाठी की अंतरिम याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक सप्ताह के लिए टाल दिया था।

अटर्नी जनरल जी. ई. वाहनवटी जिन्हें कोर्ट ने नोटिस जारी किया था, आज तीन सदस्यीय बेंच के सामने पेश होंगे। बेंच में चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन हैं। अयोध्या पर लगा हुआ है 3,000 करोड़ का सट्टा
नई दिल्ली।। एक ओर देश के गृह मंत्री जनता और नेताओं से अपील कर रहे हैं कि अयोध्या पर आने वाले फैसल

पर संयम बरता जाए, वहीं दूसरी ओर 'सट्टा बाजार' में यह मुद्दा गरमाया हुआ है। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली क्रिकेट टेस्ट सीरीज से पहले सटोरिये अयोध्या मुद्दे पर 'कमाई' करना चाहते हैं।

सूत्रों की मानें तो स्पेशल कोर्ट के फैसले को लेकर पूरे देश में करीब 3,000 करोड़ रुपये का सट्टा लगा हुआ है। अगले चंद घंटों में यह राशि और बढ़ सकती है। पूरे मामले का केंद्रबिंदु बना उत्तर प्रदेश भी सट्टेबाजी में पीछे नहीं है।

चेन्नई बना 'सुपर' जीत के साथ चैंपियन

जोहानिसबर्ग।। मुरलीधरन और रविचंद्रन अश्विन की बोलिंग तथा माइक हसी (51 नॉटआउट ) और मुरली विजय (53 बॉल, 58 रन) की सलामी जोड़ी की बढ़िया पार्टनरशिप की बदौ
लत चेन्नै सुपर किंग्स ने वॉरियर्स को 8 विकेट से चित कर चैंपियंस लीग ट्वेंटी-20 का खिताब अपने नाम कर लिया। मुरलीधरन (3/16) और रविचंद्रन आश्विन (2/16) ने स्पिन का जादू दिखाते हुए वॉरियर्स को निर्धारित 20 ओवर में सात विकेट पर 128 रन पर ही रोक दिया। जवाब में चेन्नै ने एक ओवर रहते आसानी से यह टारगेट हासिल कर लिया।

वॉरियर्स का टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने का फैसला गलत साबित हुआ और कप्तान डेवी जैकब्स (34) और क्रेग थिसेन (25) को छोड़ कर उसके बाकी बैट्समैन टिक ही नहीं पाए। जैकब्स ने 21 बॉल खेलीं और अपनी पारी में आठ चौके जड़े जबकि थिसेन ने 18 बॉल खेलीं और अपनी पारी में एक छक्का और तीन चौके जमाए।

वरुण की कविताओं ने दिल चुराया

30 साल के फिरोज वरुण गांधी भगवा पार्टी बीजेपी के बड़े 'उत्साही' मेंबर हैं और अपने भड़काऊ भाषणों की वजह से जेल की हवा भी खा चुके हैं। इसके अलावा उनकी खासियत है उनकी क्रिएटिविटी। 20 साल की उम्र में उनकी कविताओं का कलेक्शन निकला था। उनकी यही क्रिएटिविटी उन्हें यामिनी के नजदीक ले आई थी। बंगाल की बाला यामिनी ग्राफिक डिजाइनर हैं। वह दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ चुकी हैं। उन्होंने पैरिस की सोबॉन यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स का कोर्स किया है।

यामिनी के पिता सुनील रॉय चौधरी पूर्व राजनयिक थे। नजदीकी दोस्त बताते हैं कि दोनों की मुलाकात 2004 की गमिर्यों में न्यू यॉर्क में हुई थी। बीजेपी को उस साल संसदीय चुनावों में जबर्दस्त हार मिली थी। वरुण अमेरिका में छुट्टियां मना रहे थे और यामिनी वरुण के दोस्त का रेस्टोरेंट डिजाइन करने वहां आई थीं।

लंदन में परवान चढ़ा प्यार
इसके बाद दोनों अचानक लंदन में एक ओपरा के दौरान मिले, फिर दोनों ने एक साथ थाई डिनर किया। वरुण लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ चुके थे और लंदन का चप्पा-चप्पा जानते थे। सो यामिनी को लंदन की सैर कराने निकल पड़े। जल्द ही दोनों वापस दिल्ली आए और मिलते रहे। दोस्त बताते हैं तभी से वरुण बंगाली कल्चर में खास इंटरेस्ट लेने लगे। यामिनी के बारे में पूछने पर वरुण कहते हैं, एक बेहतरीन इंसान है यामिनी जो न केवल खूबसूरत है बल्कि बहुत हिम्मत वाली भी हैं।

वेज बहू को ममी का ग्रीन सिग्नल
वरुण के प्यार को मां मेनका ने खुशी-खुशी हरी झंडी दिखा दी। उसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि यामिनी वेजिटेरियन हैं। अक्सर वरुण और यामिनी को इंपीरियल होटेल के स्पाइस रूट, अशोका के मशरूबिया, अगस्त मून के टी हाउस में साथ-साथ दिखाई देते हैं। खुद यामिनी इटैलियन डिश की एक्सपर्ट हैं।

कैसे परवान चढ़ा वरुण-यामिनी का प्यार

नई दिल्ली।। बड़े भइया अब तक शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो आखिर छोटा कब तक उनकी राह देखता? बस छोटे ने अपने लिए लड़की देख ली। अब जल्द ही अब जल्द ही
गांधी-नेहरू परिवार की बहू आने वाली है। हम बात कर रहे हैं संजय-मेनका के बेटे वरुण गांधी की।

शादियों की शौकीन हिंदुस्तान की जनता शादी के सवाल पर राहुल गांधी की ना-नुकुर सुन सुनकर बोर हो चुकी थी। पर संडे को इंदिरा गांधी की छोटी बहू मेनका ने सबको खुशखबरी सुना दी कि भइया 11 दिसंबर को वरुण के हाथ पीले हो जाएंगे और बहू हैं यामिनी रॉय। सबसे खास बात ये जोड़ी कि सोनिया, राहुल समेत गांधी परिवार के सभी सदस्यों को न्योता भेजा जाएगा। गांधी-नेहरू परिवार में आखिरी बार शहनाई आज से 13 साल पहले तब गूंजी थी, जब राजीव-सोनिया की बेटी प्रियंका गांधी की शादी रॉबर्ट वॉड्रा से 1997 में हुई। तब वरुण टीनेजर थे।

Saturday, September 25, 2010

खिलाड़ियों के ठहरने के इंतजाम को लेकर आलोचना झेल रही दिल्ली
कॉमनवेल्थ गेम्स की ऑर्गनाइजिंग कमिटी को राहत देते हुए पाकि स्तानी हॉकी स्टार रेहान बट ने कहा है कि दिक्कतें मैनचेस्टर और मेलबर्न में भी थी, लेकिन किसी ने उन पर उंगली नहीं उठाई। उन्होंने भारत में सिक्युरिटी को लेकर चिंताओं को भी खारिज किया। पाकिस्तान के पूर्व कप्तान बट ने लाहौर से बातचीत में कहा, 'हम किसी मेजबान पर उंगली नहीं उठाना चाहते लेकिन मुझे लगता है कि दिल्ली में गेम्स विलेज की हालत को लेकर तिल का ताड़ बनाया जा रहा है। मैनचेस्टर में 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में हमें यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में ठहराया गया था और एक कमरे में कई खिलाड़ी थे। लेकिन हमने कोई ऐतराज नहीं किया।'
दिल्ली में गेम्स विलेज को रहने लायक नहीं बताकर कई देशों ने अपनी टीम की रवानगी टाल दी है। सुरक्षा चिंताओं को जरूरी बताते हुए बट ने कहा कि पाकिस्तान को ऐसी कोई परेशानी नहीं है और वे भारत का पूरा समर्थन करके अमन का पैगाम देना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'हमें सुरक्षा संबंधी कोई चिंता नहीं है। हम गेम्स में जरूर भाग लेंगे और अमन का पैगाम लेकर आएंगे। हम दूसरे देशों को यह संदेश देना चाहते हैं कि जब पाकिस्तान इन गेम्स में भाग लेने आ सकता है तो वे क्यों नहीं? दूसरी टीमें भारत और पाकिस्तान में सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं, जो गैरजरूरी है। भारत के पास स्पेनिश कोच और पाकिस्तान के पास डच कोच है। उन्हें तो यहां रहने में कोई दिक्कत नहीं है। यदि हम एक-दूसरे के देश में खेलेंगे नहीं तो यह दहशतगर्दी की जीत होगी।'

दिल्ली में गेम्स विलेज को रहने लायक नहीं बताकर कई देशों ने अपनी टीम की रवानगी टाल दी है। सुरक्षा चिंताओं को जरूरी बताते हुए बट ने कहा कि पाकिस्तान को ऐसी कोई परेशानी नहीं है और वे भारत का पूरा समर्थन करके अमन का पैगाम देना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'हमें सुरक्षा संबंधी कोई चिंता नहीं है। हम गेम्स में जरूर भाग लेंगे और अमन का पैगाम लेकर आएंगे। हम दूसरे देशों को यह संदेश देना चाहते हैं कि जब पाकिस्तान इन गेम्स में भाग लेने आ सकता है तो वे क्यों नहीं? दूसरी टीमें भारत और पाकिस्तान में सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं, जो गैरजरूरी है। भारत के पास स्पेनिश कोच और पाकिस्तान के पास डच कोच है। उन्हें तो यहां रहने में कोई दिक्कत नहीं है। यदि हम एक-दूसरे के देश में खेलेंगे नहीं तो यह दहशतगर्दी की जीत होगी।'
जीशान अशरफ की अगुआई वाली पाकिस्तानी हॉकी टीम 29 सितंबर को भारत पहुंचेगी , जिसे 30 सितंबर को साउथ अफ्रीका से प्रैक्टिस मैच खेलना है। फरवरी - मार्च में दिल्ली में हुए वर्ल्ड कप में 12 वें और आखिरी स्थान पर रही पाकिस्तानी टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले हॉलैंड में कड़ा अभ्यास किया है और उसे इस बार पॉडियम फिनिश की उम्मीद है। बट ने कहा , ' हमने यूरोप दौरे पर स्पेन और हॉलैंड से ड्रॉ खेला , जबकि फ्रांस को हराया। इसके बाद एक से 20 सितंबर तक हॉलैंड में अभ्यास किया। इस बार हम वर्ल्ड कप की गलतियों को नहीं दोहराएंगे। '

पाकिस्तान को कॉमनवेल्थ गेम्स में कठिन पूल मिला है , जिसमें मेजबान भारत और वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया भी है। बट ने कहा , ' हमें अच्छे प्रदर्शन का यकीन है। नवंबर में होने वाले एशियाड ज्यादा अहम हैं और कॉमनवेल्थ गेम्स जरिए उसकी तैयारी पुख्ता होगी। ' पाकिस्तानी टीम को वर्ल्ड रेकॉर्डधारी ड्रैग फ्लिकर सोहेल अब्बास और गोलकीपर सलमान अकबर की कमी खलेगी। सोहेल खराब फॉर्म के कारण टीम से बाहर हैं , जबकि सलमान डच लीग में बिजी हैं। हालांकि बट को इनके बिना भी नए खिलाडि़यों के साथ अच्छे प्रदर्शन की उम्मी द है।